Unpaid seller ( अदत्त विक्रेता / न चुकाया हुआ विक्रेता / अवेतनिक विक्रेता )

 Unpaid seller का मतलव एक ऐसा seller जो unpaid रह गया अर्थात जिसको payment होना था परन्तु payment नहीं मिला ऐसे seller को unpaid seller कहते है !

Sale of goods act 1930 की धारा 15 (1) के अनुसार एक विक्रेता निम्न दशा में unpaid seller माना जाता है  -
1  जब एक क्रेता ने विक्रेता को खरीदी गयी बस्तु का पूरा भुगतान नहीं किया या थोडा भुगतान भी बाकी रह गया है और क्रेता भुगतान करने से मना करता है तो ऐसी दशा में विक्रेता unpaid रह गया है ! और वह क्रेता के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है !

2 एक विक्रेता जब भी unpaid seller माना जाएगा जब उसने माल क्रेता को दिया और कहा कि 1 महीने में पेमेंट कर देना, अब क्रेता 1 महीने में पेमेंट नहीं करता है ! क्योंकि समय समाप्त होने के बाद भी पेमेंट नहीं मिला, साथ ही सेलर 1 महीने से पहले क्रेता पर unpaid की कार्यवाही करता है तो वह unpaid नहीं माना जाएगा क्योंकि seller स्वयं ने ही 1 महीने का समय दिया था !

3 एक विक्रेता unpaid seller माना जाएगा जब क्रेता माल का भुगतान चेक के रूप में करता है और चेक बाउंस हो जाता है अर्थात क्लियर नहीं होता है !

4 जब विक्रेता ने माल उधार दिया ही नहीं अर्थात विक्रेता ने क्रेता को माल दे दिया परन्तु क्रेता ने माल लेने के बाद भुगतान नहीं किया तो यह विक्रेता unpaid है क्योकि हम यह मानते है की भुगतान व् माल की डिलेवरी दोनों साथ साथ होती है !

नोट : - यदि क्रेता को एक खरीददार ने माल का भुगतान तो कर दिया परन्तु अन्य खर्चा नहीं किया तो यहा हम विक्रेता को unpaid नहीं कहेगे ! उदाहरण : - विक्रेता ने 5000 का माल व् 500 का भाडा देकर माल की डिलेवरी क्रेता को करवाई अब क्रेता 5000 दे दिया परन्तु भाड़ा नहीं दिया तो यहा हम क्रेता को unpaid seller नहीं कहेगे क्योकि यह माल का तो सम्पुरण भुगतान प्राप्त हो चूका है !

Unpaid seller के अधिकार : -

sale of goods act 1930 के अनुसार unpaid seller को दो प्रकार के अधिकार प्राप्त है  - (1) माल के प्रति अधिकार, (2) क्रेता के प्रति अधिकार 

माल के प्रति अधिकार ( right against goods ) : -

1 पुनग्रहणाधिकार - यदि विक्रेता unpaid seller है और माल अभी क्रेता के पास मोजूद है तो यह विक्रेता को माल को कब्जे में लेने का अधिकार प्राप्त है ! साथ ही साथ वह unpaid seller भी रहेगा !

2 पारगमन(stoping) को रोकने का अधिकार - अगर माल विक्रेता से निकल गया है और क्रेता के पास नहीं पहुचा है तो विक्रेता माल को बीच में ही रुकबा सकता है ! और payment की माग कर सकता है !

3 पुन: विक्री ( Re sale ) - इस अधिनियम के तहत unpaid seller को माल को पुन: विक्री का अधिकार प्राप्त है !

Unpaid seller का क्रेता के प्रति अधिकार ( right against buyer ) : -

1 कीमत के लिए मुकादमा - (अ) अगर कभी मान लीजिये खरीददार ने सामान ले लिया या गलत तरीके से माल की अपेक्षा करता है या विक्रेता अनुसार भुगतान करने से मना करता है तो इस अधिनियम के अनुसार विक्रेता माल की कीमत के लिए मुकदमा कर सकता है !, (ब) बिक्री के अनुबंध के तहत क्रेता ने विक्रेता को जिस दिन कीमत देने का बाधा किया या अनुबंध किया उस दिन क्रेता ने माल की कीमत विक्रेता को नहीं दी तो विक्रेता, क्रेता के ऊपर मुकदमा कर सकता है ! चाहे विक्रेता ने क्रेता को माल भेजा ही ना हो !

2 न स्वीकार करने से होने वाली हानि के लिये मुकदमा - यदि क्रेता ने माल खरीदा विक्रेता ने माल भेज दिया अब क्रेता उसे लेने से मना करता है या भुगतान को नजरअंदाज करता है या फिर मना ल के अस्वीकार करने की वजह से हुई हानि के लिए विक्रेता मुकदमा कर सकता है !
करता है, तो मा

3 निर्धारित तिथि से पूर्व अनुबंध का अस्वीकार करना - यदि क्रेता वस्तु दिए जाने की तिथि के पूर्व अनुबंध को अस्वीकार करता है तो विक्रेता उल्लंघन की वजह से होने वाली हानि के लिए मुकदमा कर सकता है !

4 ब्याज के लिये मुकदमा -  आगे कभी बिक्री के लिए अनुबंध यह ना लिखा गया की ब्याज नहीं मिलेगा तब तक क्रेता व् विक्रेता दोनों को अधिकार है कि वे ब्याज के लिए मांग कर सकता है माल की बिक्री अधिनियम 1930 में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी गयी है जो यह बोले की ब्याज नहीं मीलेगा !
यहा पर ब्याज या तो बिक्री के अनुबंध पर लिख लिया जाता है या फिर ब्याज की दर कोर्ट तय करता है !