मौर्य शासको का शासन प्रबंध
केन्दीय शासन
➤ साम्राज्य विस्तार - सम्पूर्ण मौर्य साम्राज्य अनेक प्रान्तों में विभक्त था चन्द्रगुप्त मौर्य के समय इस प्रान्तों कि संख्या कितनी थी यह निश्चयपूर्वक नही कहा जा सकता है |
➤ राजा - सम्पूर्ण साम्राज्य का सर्वोच्च पदाधिकारी स्वयं सम्राट ( राजा ) था |
➤ प्राचीन भारत में राज्य के 7 अंग समझे जाते थे - (१) राजा, (२) अमात्य, (३) जनपद, (४) दुर्ग, (५) कोश, (६) सेना, (७) मित्र | इन्ही के ऊपर राजा राज्य आधारित था इनमे सर्वप्रमुख स्थान राजा का था |
➤ कार्यकारणी - राज्य कि समस्त उच्च कर्मचारियो - मंत्रियो, पुरोहितो, गुप्तचरों, राजदूतो आदि कि नियुक्ति का विशेष उत्तरदायित्व राजा पर हि था |
➤ व्यवस्थापिका - कौटिल्य के अनुसार राजा को व्यक्तिगत रूप से भी कानून बनाने का अधिकार था वह धर्मप्रवर्तक ( कानून बनाने बाला ) कहा जाता था |
➤ न्याय - राजा अपनी राज्य सभा में बैठ कर दिन भर प्रजा के आवेदनों को सुना करता था उन पर न्याय किया करता था |
➤ मन्त्री - दैनिक कार्यो कि लिए राजा कुछ मन्त्री नियुक्ति करता था | राजा इन्ही मन्त्री कि सहायता से राज्य के समस्त कर्मचारियों के कार्यो कि परीक्षा लेता था राजदूतो व् गुप्तचरों कि नियुक्ति में भी ये मन्त्री राजा को परामर्श देते थे \
➤ समाहर्ता - इसका प्रमुख कार्य कर एकत्र करना था | जनपदीय कार्यो में सहायता करने के लिए समाहर्ता कि अधीन शुल्कध्यक्ष ( व्यापार सम्बन्धी करो लो एकत्र करने बाला ), पित्वाधयक्ष ( तौल व् माप कि देखरेख करने बाला ), सिताध्यक्ष ( कृषि विभाग का अध्यक्ष ), गनिकाध्यक्ष, अश्वाध्यक्ष, पण्यध्यक्ष ( बाजार पर नियन्त्रण रखने बाला ), लक्ष्याध्यक्ष ( मुद्र्निती पर निन्त्रण रखने बाला ) आदि पदाधिकारी कार्य करते थे |
➤ अन्तपाल - सीमांत प्रदेशो में बने हुए दुग्रो ली रक्षा करना इस पदाधिकारी का काम था |
➤ दुग्रपाल - देश कि भीतरी भागो में स्थित दुग्रो कि रक्षा का भार दुग्रपालो को सोपा गया था |
➤ अमात्य - केंद्र के समस्त उच्चाधिकारियों का संवर्ग अमात्य कहलाता था यह आधुनिक IAS के सामान था |
➤ सेनापति - यह सम्पुरण सेना का उच्च अधिकारी था तथा सेना भर्ती का कार्य भी यही करता था |
मौर्य वंश का अन्य प्रशासन
➤ अशोक के समय मौर्य साम्राज्यों में प्रान्तों कि सख्या 5 थी | प्रान्तों को चक्र कहा जाता था प्रान्तों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहा जाता था |
➤ मौर्य कालीन प्रान्त -
उत्तरापथ - इसकी राजधानी तक्षशिला थी |
दक्षिणापथ - इसकी राजधानी स्वर्णगिरी थी |
अवन्ती प्रान्त - इसकी राजधानी उज्जैनी थी |
प्रार्ची - इसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी |
कलिंग - इसकी राजधानी तोसली थी |
➤ प्रशासन कि सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसका मुख्या ग्रामिक था |
➤ प्रशसको में सबसे छोटा गोप था जो 10 ग्रामो का शासन चलता था |
➤ युद्ध क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करने वाला नायक कहलाता था सैन्य विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति था |
➤ मौर्य काल में जनपदीय न्यायलय के न्यायधीश को राजूक कहा जाता था
➤ सरकारी भूमि को सीता कहा जाता था तथा बिना बर्षा के अच्छी खेती होने वाली भूमि को मातर्क कहा जाता था |
➤ मौर्य काल में सबसे उच्च अधिकारी तीर्थ कहलाता था इनकी सख्या 18 थी |
➤ दुसरे दर्जे का अधिकारी अध्यक्ष कहलाता था जिनकी सख्या 26 थी |
➤ कृषि, व्यापार व् पशुपालन को सयुक्त रूप से वार्ता कहते थे |
➤ मौर्य कालीन मुद्रा को " पण "कहते है |
➤ मौर्य काल में पूर्व दिशा का बंदरगाह ताम्रलिपटी ( बंगाल ) तथा पश्चिमी दिशा का बंदरगाह भारूकच्छ ( भड़ोच्छ-गुजरात ) में था |
➤ मौर्य काल में दो प्रकार के न्यायलय थे - (१) धर्मस्तीय ( अर्थात दीवानी न्यायलय ), (२) कन्ठनशोधन ( अर्थात फौजदारी न्यायलय )
➤ गुप्त चरो को गूढ़पुरुष कहा जाता था ये दो प्रकार के होते थे - (१) संस्था - जो एक ही स्थान पर रहकर कार्य करते थे |, (२) संचार - जो घूम-घूम कर गुप्तचरी करते थे |
➤ मौर्य काल का सबसे विकसित उधोग वस्त्र उधोग था |
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